Friday, October 15, 2010

Cosmetics changed !





Juvenilia is glad to see its first guest post from Mr. Raghav Lal, a prolific writer and a social worker in reply to the post by Himanshu Shekhar titled Macauley's Legacy - 2. Owner of Juvenilia is the grand son of Mr. Raghav Lal.

The legacy of Indians with scholarly English aptitude is large and commemorable. With the advent of long slavery and consequent feeding of Indian School of thoughts and their applied sociology, the Indian entrepreneurs were compelled to search the centre of live institutes in English medium in the country and Oxford and Cambridge abroad. Institutions abroad were compelled to appreciate the Indian talents even in their 'racial hatred' and 'false white pride'. Indian students did establish their flag mast in every sphere like science, Mathematics, literature, politicsal aspirations, weaponry and battle field. Their curious learning, sincere research and appropriate use of vocabulary received appreciation on the world platform of genius.

1. A physicist Shri Jagdish Chandra Bose's experiment to prove life in immate bodies was a miracle.

2. Shri Satyendra Nath Bose's is still on the record in the form of Bose-Einstein Theory.

3. Indian Young students in London established a hostel for themselves where world class rebellions and freedom fighters could find a cordial shelter and framed the blue print of their future government. And the same hostel is known as 'India House' now. Lenin, De- Belra, Maxim Gorkey and M.N Roy may be counted in this context.

4. Many freedom fighters like Shri Vinayak Damodar Savarkar wrote his famous book, 'the first war of Indian Independence' in English.

5. Shri Aurobindo Ghosh, Shri Subhash Chandra Bose, Mahatma Gandhi, Shri Raj Gopalachari and Smt. Sarojini Naidu preferred English language to express their claim for freedom of the country and exposed the tyranny imposed by the British rule.

6. The English answer sheets of M.A class were sent to Oxford from Calcutta for usual assessment and the answer sheet of an ordinary examinee, Rajendra Prasad was sent back with glamorous remark
The Examinee is better than the examiner.
7. And most importantly, one can't forget the mesmerized faces of the delegates when Swami Vivekananda began explaining the values of Indian life and Religion in the Chicago world Religion Conference in English.

All such prestigious records were established by such Indian youths whose sole aims and objectives were to earn prestige for the nation. They preferred high thinking even in scarcity.
Now a days India has top educational institutions to teach all wordly go of the life, which are at par with those abroad. Many foreigners are longing to get education here. Many so-called advanced countries prefer to get their patients treated here, even in a critical case. Many American and European big countries of hardware and software have established their branches in India with confidence of perfection in their product in India. President Obama regularly expresses his anxiety over growing competence of the Indian youth in production and the managerial skills of the industries.
So, the problem doesn't lie with the media of expression, but with fading the national pride. The present national scenario of aspirations in India has synchronized itself in the self domain and singularity.
I must earn money and avail a lavish life
This is the goal insight. Thus they are earning and shaping life like crorepati in individual capacity. So, they do not take it bad to project advertisement with wrong spell like the one in Child bear'.
They have love neither for Indian arts, culture, books or lifestyle nor for the same imported from abroad. They seek money, apply sure success tools for that and enjoy satisfaction in life.

Please wait for the time of saturation to come....


Tuesday, October 12, 2010

I'll vote for the leader, if he uses Garnier !


I remember when I came home from Sainik School in the preparation leave for class Tenth boards, to be precise in February 2006, I brought along with 'Five Point Someone'. And when I was supposed to study for the boards, I kept my self occupied in this novel. One day, Dadaji astonishingly held the book and turned a few pages of the same. None of my surprise, he warned me for reading that book saying, this poor chap (Chetan Bhagat) knows very well how to write bad things in a good manner and knows very well how to distract the teenagers. Today once again Dadaji confronted with the same chap's article in TOI. But this time that poor chap is no more a poor. He has grown into a man of deep insight for the nation. Dadaji was so impressed with his article that he asked me to translate that article in Hindi so as to make that article reach a larger mass. The article that follows is a sole work of Chetan Bhagat. The only credit that Juvenilia possesses is its translation in Hindi.

इससे पहले कि मैं शुरुआत करूँ , मैं ये स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं न तो किसी राजनीतिक दल का समर्थन कर रहा हूँ, न ही मुझे किसी राजनीतिक दल से कोई क्षोभ है l मैंने ये लेख अपने निरीक्षण से और देश में हो रही हलचलों को भांप कर लिखा है l
मुझे ऐसा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी अभी अपनी अब तक कि सबसे मजबूत स्थिति में है l पर क्या ये सत्ता में आ सकती है ? बेशक, ये संभव है l पर एक मजबूत स्थिति में होने से सत्ता में आने के लिए उसे कुछ कदम उठाने पड़ेंगे l मैं उन सारे संभव प्रयासों को आपके सामने लाने कि कोशिश करूँगा l मैं ये इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि मैं ये समझता हूँ कि एक मजबूत विपक्ष देश के हित में अत्यंत आवश्यक है l
सबसे पहले तो, मैं भाजपा को इस बात के लिए दाद देना चाहता हूँ, कि उसने अयोध्या मसले के कोर्ट के फैसले के बाद भी अपने पर पूरा नियंत्रण रखा l जरा सोचिये , इस फैसले ने पूरी तरह से भाजपा एवं उसकी मांगों को सही ठहराया l ये वही मसला है, जिसके लिए भाजपा ने पिछले बीस सालों से सिर-पाँव एक कर रखा था l यहाँ तक कि उसने अपनी साफ़-सुथरी छवि तक को दांव पर लगा डाला था l जनता में एक गलत सन्देश भी गया था l भाजपा ने अपने कुछ वोटरों को भी इसकी खातिर गंवाया था l
पर इन सब के बाद भी जब कोर्ट का फैसला आया तो भाजपा एवं उसके मित्रों- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ , विश्व हिन्दू परिषद् एवं अन्य भगवा प्रेमियों ने जीत के जश्न का इजहार तक नहीं किया l कहीं जीत की रैली नहीं दिखी, उत्सव का माहौल नहीं दिखा l नहीं, क्योंकि भाजपा ने शान्ति को तवज्जो दी !
एक राजनितिक दल के लिए विपक्ष में होते हुए ये कोई आसन काम नहीं था l ऐसी जीत तो पार्टी के कार्यकर्ताओं में जान फूंकने के लिए एक उम्दा वजह थी l इसे प्रदर्शित कर भाजपा जनता में अपनी पैठ को और भी गहरा कर सकती थी l
पर क्यों ? आखिर भाजपा ने ऐसा कोई जश्न या उत्सव क्यों नहीं रखा ? भाजपा अपने अन्य भगवा प्रेमियों को कैसे शांत रख पायी ? सिर्फ इसलिए की उन सबने शान्ति को तवज्जो दी l
उत्तर स्पष्ट है - भाजपा को ये बखूबी पता है कि अभी वो अपनी अब तक कि सबसे मजबूत स्थिति में है l

और कांग्रेस द्वारा अपने ही पाले को ध्वस्त करने की कोशिशों ने काफी हद तक इसमें भाजपा की मदद की l बजट में अनियंत्रित व्यय ने मुद्रास्फीति के दर को लगातार बढ़ने दिया l राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भूचाल भ्रष्टाचार के भी दोषी अभी तक सलाखों के बाहर हैं l कश्मीर मुद्दा एवं अन्य कई ऐसी गलतियाँ हैं जो की सत्ताधारी दल ने की हैं l
अतिरिक्त इनके, उनका सिरमौर सभी कुछ नियंत्रित करता है, पर जिम्मेदारी किसी बात की नहीं लेता, कभी कुछ बोलता नहीं है -- एक गैरजिम्मेदाराना हरकत का उम्दा उदाहरण !! और ये कोई सुन्दर दृश्य नहीं है l
पलड़ा अब भाजपा की तरफ झुक रहा है, और वैसे भी पिछले चुनाव में भाजपा ने महज ४ प्रतिशत वोट ही तो कम पाया था कांग्रेस की तुलना में l मतलब इसका ये है कि महज २ प्रतिशत वोट सारा पासा पलट सकता है कभी भी l

मगर,

कांग्रेस द्वारा खुद के पाले को ध्वस्त करने की कोशिश और उनकी गलतियों की वजह से जनता भाजपा को वोट देने लगेगी , ऐसा नहीं है l आवश्यक ये है की जनता भाजपा भाजपा की तरफ आकर्षित हो, न की कांग्रेस से विक्षुब्द हो कर भाजपा की तरफ आ जाए l

एक उदाहरण देता हूँ -

Apple ने हमेशा से Microsoft पर निशाना साधा है l Apple ने इस वजह से कुछ चुतपुतिए प्रशंशक भी पा लिए l पर कभी भी Apple , Microsoft के लिए तगड़ा प्रतिद्वंदी नहीं बन सका. जब Apple ने अच्छे सामान बनाने शुरू किये तभी लोगों ने Microsoft से Apple की तरफ रुख करना शुरू किया l आज बाजार में Apple का शेयर Microsoft से कहीं ज्यादा है l

ठीक उसी तरह आज भाजपा को भी अच्छे सामान देने पड़ेंगे जनता के लिए l

सबसे पहले तो भाजपा को अपने मूल्यों और लक्ष्यों को संक्षिप्त में समझाना पड़ेगा l भाजपा के सिद्धांत काफी लम्बे और नीरस हैं. लक्ष्य इतने छोटे होने चाहिए की उसे हम एक विजिटिंग कार्ड के पीछे लिख सकें या फिर एक SMS में आसानी से भेजे जा सकें l और साथ ही साथ आसान भाषा में भी होने चाहिए l
लक्ष्य ऐसे होने चाहिए जैसे -
जनता के प्रति जिम्मेदारी, भ्रष्टाचार का पूर्ण बहिष्कार, युवा प्रतिनिधित्व एवं धर्मं निरपेक्षता l

दूसरा ये की इन सभी लक्ष्यों को निर्धारित करने के साथ ही एक ठोस कदम भी निर्धारित किये जाने चाहिए l उदाहरण के लिए जनता के प्रति जिम्मेदारी हेतु, हर MP के लिए ये आवश्यक कर दिया जाना चाहिए कि वे अपनी कार्यों कि डायरी को एक online platform के माध्यम से जनता के सामने रखें l भ्रष्टाचार के पूर्ण बहिष्कार हेतु पार्टी को अपने अन्दर से उन सभी भ्रष्ट तत्वों को इससे पहले ही निकाल फेंकना चाहिए कि उसे कोर्ट दोषी ठहराए l युवा प्रतिनिधित्व हेतु, पार्टी को कुछ प्रतिशत टिकट युवाओं के लिए आरक्षित कर देने चाहिए l
ये सब कुछ ऐसे कदम हैं जिसके लिए भारत को ऐसी राजनीति देखनी पड़ेगी जो कभी इसने देखी नहीं है, पर आज भारत इन सबके के लिए अवश्य रूप से तैयार है l

तीसरा सामान जो भाजपा जनता को दे सकती है, वो थोडा रंगीन प्रतीत होता है परन्तु उतना ही आवश्यक भी है l नेताओं को ऐसा बनना पड़ेगा कि वो युवाओं को प्रोत्साहित कर सकें l ऐसा होने के लिए सारी चीजें महत्त्वपूर्ण हैं- योग्यता, जनसंपर्क में सिद्धता ,कर्मठता एवं सक्रियता l और हाँ उनका रंग-रूप, कद-काया, और चेहरा भी !!
ये सब गुण थोड़े दोयम दर्जे के प्रतीत हो सकते हैं पर ये वही गुण हैं जो मीडिया को अपनी ओर आकर्षित करते हैं | और आज के समय में मीडिया कि ताकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है |

अंतिम परन्तु सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयास भाजपा का ये होना चाहिए कि वो अपने-आप को उत्तेजक भाषणों से जितना दूर रख सकती हो, रखे | ये पागलपन में बोले गए उत्तेजक भाषण कभी भी विश्वास जीतने में सफल नहीं हो सकते| घृणा का भाषण करने वाले बिलकुल सिनेमा में आईटम नंबर करने वाली नायिकयों के सामान होते हैं, जो तात्कालिक आकर्षण तो पा लेती हैं परन्तु अपने मूल्यों को गवां देती हैं|
इसलिए आपका ये अत्यावश्यक प्रयास होना चाहिए कि आप ये निर्धारित कर लें कि आपको आईटम नंबर वाली नायिका बनना है या मुख्य किरदार वाला नायक !!

बहुत जल्द राष्ट्रमंडल खेल ख़त्म हो जायेंगे, संसद का सत्र पुनः शुरू हो जायेगा | सच्ची आतिशबाजी का लुत्फ़ तो तब आएगा जब सारा विपक्ष , भाजपा के नेतृत्व में एकजुट होकर राष्ट्रमंडल खेलों के भ्रष्ट अफसरों को सलाखों के पीछे करवाएगा | इस बूते पर भाजपा अपने पुराने रंग धोकर एक नए सुन्दर अवतार में आ सकती है | एक नया आधुनिक अवतार , धर्मनिरपेक्ष अवतार एवं एक शालीन राजनितिक दल की छवि वाला अवतार | और तभी मंदिर की घंटियाँ बजेंगी | तब न केवल हमारे पास रामजन्मभूमि होगी , एक राम राज्य भी होगा |

तो क्या भाजपा इस चुनौती के लिए तैयार है ?

PS: I'm sorry for those who clicked on this article assuming it to be in Engilsh. Please find the original article by Chetan Bhagat in English here.